सांयकाल माता के प्रसन्नार्थ लोग सोना-चांदी, पीतल, तांबा, कांसा आदि से निर्मित गृहस्थी के सामानों की खरीदारी करते हैं। इसके अलावा वाहन, सोना-चांदी, आभूषण, इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट आदि की खरीदारी भी होती है। मान्यता है कि धनतेरस के दिन की खरीदारी से घर में सुख संपदा-वैभव बढ़ता है और माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। ज्योर्तिवेद विज्ञान केंद्र के निदेशक डॉ. राजनाथ झा के अनुसार इसी दिन परिवार में दुर्घटना से बचाव एवं स्वास्थ्य लाभ से निमित सांयकाल यम दीप दान कर अपने परिवार की सुरक्षा की कामना भी लोग ईश्वर से करते हैं।
इस दिन से लेकर दीपावली पर्यंत जो भी व्यक्ति माता महालक्ष्मी के प्रसन्नार्थ जप, पाठ, पूजा तीनों दिन करते हैं, उन पे माता की असीम कृपा प्राप्त होती है। इसके अगले दिन नरक चतुर्दशी और संकट मोचन हनुमान जी की जयंती होगी एवं उसके अगले दिन अमावस्या को दीपोत्सव दीपावली व महालक्ष्मी पूजन होगा।

पिछले कुछ त्योहारों की तरह धनतेरस पर भी कुछ पंडित-पुजारियों व ज्योतिषाचार्यो की राय अलग-अलग है। पंडित श्रीपति त्रिपाठी के अनुसार त्रयोदशी शुक्रवार को उदया तिथि में भी रहेगी और प्रदोषकाल के समय भी। इस दिन शाम 5:59 बजे तक त्रयोदशी तिथि है। उदया तिथि के अनुसार ही धनतेरस मनायी जाएगी। ऐसे में 13 नवंबर को ही धनतेरस मनाना सही होगा। महावीर मंदिर के प्रकाशन विभाग के प्रभारी पंडित भवनाथ झा के अनुसार धनतेरस 12 नवंबर को ही मनाना उचित है। क्योंकि 13 नवंबर को हनुमान जयंती है। लेकिन, अखंडवासिनी मंदिर के पुजारी पंडित विशाल तिवारी के अनुसार धनतेरस 12 को है, पर 13 नवंबर को दिन में भी रहेगा। ऐसे में 13 नवंबर शुक्रवार को भी पूरे दिन खरीदारी की जा सकती है। उसका फल भी धनतेरस की तरह ही होगा। पंच शिव मंदिर के पुजारी पंडित प्रमोद पाण्डेय के अनुसार 12 नवंबर गुरुवार को प्रदोष काल में धनतेरस मनाई जाएगी।

खरीदारी का शुभ मुहूर्त संध्या 6:44 से रात्रि 9:40 तक

धनतेरस पर सर्वोत्तम खरीदारी का शुभ मुहूर्त संध्या 6:44 से रात्रि 9:40 तक है। दिन में स्थिर कुंभ लग्न 12:59 से 2:30 तक है। धनतेरस के दिन भी लक्ष्मी गणेश की पूजा की जाती है। जिसका सबसे उत्तम मुहूर्त गोधूलि बेला में 5:40 से 7:36 संध्या काल में है। – ज्योतिषाचार्य

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इस बार दाे दिन गुरुवार अाैर शुक्रवार को धनवंतरी जयंती धनतेरस मनाई जाएगी। सनातन धर्म परंपरा में मान्यता है कि प्रदोष समय में यानी सूर्यास्त के समय गोधुली बेला से रात्रि पर्यंत जिस दिन त्रयोदशी तिथि पड़े, उसी दिन धनतेरस मनाना चाहिए। इसी दिन आयुर्वेद के जनक धनवंतरी का प्रादुर्भाव समुद्र मंथन से हुआ था। इस दिन चिकित्सक-वैद्य लोग प्राचीन काल से ही जनमानस के कल्याणार्थ भगवान धनवंतरी का विशेष पूजन करते हैं।