नवगछिया : अजीत पाण्डेय, कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी का बहुत महत्व होता है। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इस देवउठनी एकादशी को देवोत्थान एकादशी, देव उठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी कई नामों से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु क्षीर सागर में 4 महीने की निद्रा के बाद जागते हैं। कार्तिक माह की एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु जागते हैं इनके जागने के बाद से सभी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य फिर से आरंभ हो जाते हैं।

दरअसल, ऐसी मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी होती है, जब भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में 4 माह के शयन के लिए चले जाते हैं. इन चार महिनों के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता. शादी विवाह नहीं होता है. देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु के जागने के साथ ही मांगलिक और शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है.इन चार महीनों में पूरी सृष्टि की जिम्मेदारी भगवान शंकर के साथ अन्य देवी -देवताताओं के कंधे पर आ जाती है।

देवी-देवता मनाते हैं दिवाली

देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के जागने के साथ ही सभी तरह के मांगलिक और शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। इसकी खुशी में सभी देवी-देवता पृथ्वी पर एक साथ आकर देव दीवाली मनाते है जिसका बहुत महत्व होता है। इस बार देवोत्थान एकादशी 19 नवंबर को मनाई जाएगी। दिवाली के समय भगवान विष्णु निद्रा में लीन होते हैं, इसलिए लक्ष्मी की पूजा उनके बिना ही की जाती है। मान्यता है कि देवउठनी ग्यारस को भगवान विष्णु के उठने के बाद सभी देवों ने भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती उतारी, इसलिए यही देव दिवाली है।

Whatsapp group Join

तुलसी-शालीग्राम विवाह

देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और भगवान शालिग्राम के विवाह का आयोजन किया जाता है है। भगवान तुलसी को तुलसी बहुत प्रिय होती है। तुलसी ने पति का साथ न देकर विष्णु का साथ दिया। विष्णु के साथ हास-परिहास भी उनके असुरपति को हार दिला सकता था, उन्होंने परिहास किया। जब वह उसके साथ भस्म हो गईं, तो कहते हैं कि उनके शरीर की भस्म से तुलसी का पौधा बना। यह पौधा भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। हर भोग को वह तुलसी पत्र के साथ ही स्वीकार करते हैं।