मिथिला संस्कृति का पर्व मधुश्रावणी साेमवार से प्रारंभ होगा। नवविवाहिताओं द्वारा किए जाने वाले इस पूजा का विशेष महत्व है। पर्व के दौरान महिलाएं सुबह गंगा में स्नान करने के बाद पूजन आरंभ करेंगी। यह पूजा 13 दिनों तक चलेगी। 3 अगस्त को संपन्न होगा। मधुश्रावणी पूजा का काफी महत्व है। कुपेश्वरनाथ महादेव के पंडित विजयानंद शास्त्री ने बताया कि मधुश्रावणी का व्रत पति की दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है। इस व्रत में माैना, पंचमी, गौरी, पृथ्वी,महादेव, गंगा कथा, बिहुला कथा सहित 14 कथा का श्रवण किया जाता है। अायाेजन के सातवें, अाठवें तथा नाैवें दिन प्रसाद के रूप में खीर, मालपुए का भोग लगाया जाता है। प्रतिदिन संध्या काल में महिलाएं आरती सुहाग के गीत, कोहबर गीत, गाकर भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न की जाती है।

माता पार्वती ने किया था मधुश्रावणी का व्रत

ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती सबसे प्रथम मधुश्रावणी का व्रत किया था। इसलिए पार्वती व शिव की कथा सुनी जाती है। वहीं ससुराल से अाए पूजन सामग्री दूध, लावा व अन्य सामग्री के साथ नाग देवता व विषहरी की भी पूजा की जाती है। शादी के प्रथम वर्ष इस त्याेहार का अपने-अाप में विशेष महत्व है, जिसकी अनुभूति नवविवाहिता कर सकती हैं।

पूजा में महिलाएं ही करती हैं पुरोहित का कार्य

व्रत की खासियत रही है कि इसमें यजमान के साथ पुरोहित की भूमिका महिलाएं ही निभाती हैं। महिलाएं इस व्रत का विधि-विधान और तौर तरीके को बताती हैं। मधुश्रावणी व्रत में महिलाएं कथा भी कहती हैं। इस पर्व की परंपरा काे कायम रखने वाली इन महिलाअाें की चलती भी देखने लायक हाेती है। मायके ससुराल के सहयाेग से हाेती है मधुश्रावणी पर्व। इसमें मैना के पत्ता पर पूजा किया जाता है। नवविवाहिता पत्ते पर नाग-नागिन की बनी अाकृति पर दूध-लावा चढ़ाकर अपने सुहाग के साथ-साथ परिवार की मंगल कामना करती हैं।

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पूजा में भार्इ का भी याेगदान रहता है। प्रत्येक दिन पूजा समाप्ति के बाद भार्इ बहन काे हाथ पकड़कर उठाते हैं। मधुश्रावणी में टेमी दागने की भी प्राचीन परंपरा रही है। नवविवाहिताअाें काे गर्म पान, सुपाड़ी एवं अारत पत्ता से हाथ एवं पांव काे दागा जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि इससे पति-पत्नी का संबंध मजबूत रहता है। अाज भाी प्राचीन परंपरा बरकरार है। इस दाैरान महिलाएं समूह गीत गाती हैं।